4. स्वदारा संतोष परस्त्रीगमन विरमण अणुव्रत
पूर्णरूपेण वीर्य की रक्षा करना त्यागी मुनि भगवंतों का पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत है | अपनी धर्मपत्नी मात्र पर संतोष रखना गृहस्थों का ब्रह्मचर्य व्रत है | स्व नारी पर संतोष करने वाले व्यक्ति को यति-सम माना गया है परस्त्री को कभी बुरे भाव से नहीं देखना चाहिए अपने से बड़ी स्त्री को मातृवत, हम उम्र को बहन तथा छोटी स्त्री को पुत्रीवत समझना चाहिए इसी तरह नारी भी अपने पति पर ही संतोष कर अन्य पुरुषों को पवित्र दृष्टि से देखें अन्य पुरुषों को पिता, भ्राता व पुत्रवत समझना यह श्राविका का ब्रह्मचर्य व्रत है |
ब्रह्मचर्य के गुण :- ब्रह्मचर्य के बल से योगेश्वर सहज ही आत्म स्वरूप को पा जाते हैं | इस व्रत का पालन वीर पुरुषों का कार्य है | मन, वचन और काया से ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला पुरुष तीनो लोक में पूजनीय बनता है | बल, कांति और स्वच्छ जीवन ब्रह्मचर्य पर ही आश्रित है | ब्रह्मचर्य गुण हीन व्यक्ति के अन्य गुणों की कोई गणना नहीं है | इंद्रियासक्त निर्बल पुरुष का ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकते हैं | विषय वासना बुरे विचारों व कुसंगति से ही उत्पन्न होती है अतः ब्रह्मचारियों को कुविचार व कुसंगति से नितांत बच कर रहना चाहिए | पूर्व में देखी सुनी अथवा अनुभव में आई हुई वासना युक्त बातों के विचारने से कुविचार उत्पन्न होते हैं ब्रह्मचारी पुरुषों को स्त्रियों से तथा स्त्रियों को पुरुषों से दूर रहना चाहिए, जहां एकांत हो वहां स्त्री पुरुष साथ ना रहे उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर ही ब्रह्मचर्य का पूर्णरूपेण पालन किया जा सकता है |
ब्रह्मचारी स्त्री पुरुष पर्वत से भी महान व व्यभिचारी राख से भी निकृष्ट है | जब अग्नि अपने यथार्थ रूप में होती है तो हिंसक भयानक पशु तक उससे डरते हैं | हवन, यज्ञ, पूजन, आरती आदि शुभ व धार्मिक कृत्य होते हैं |ज्वलित अग्नि को देवता वत पूजा जाता है किंतु जब अग्नि ज्वालन गुण रहित हो जाती है तब राख कहलाती है और राख पर शुद्र जन्तु तक पैर लगाते हैं राख से झूठे बर्तन साफ किए जाते हैं गंदगी को ढका जाता है यही अवस्था ब्रम्हचर्य हीन मनुष्य की होती है, उसका बड़प्पन नष्ट भ्रष्ट हो जाता है, व्यभिचारी व्यक्ति अपमान का पात्र बनकर किए पापों के कारण दुर्गति पाता है |
विषय वासना व इंद्रियासक्ति का स्वाद ''किम्पाक'' के फल सदृश है, ''किम्पाक'' फल सुंदर, सुगंधित व स्वादिष्ट होता है किंतु जो ही गले के नीचे उतरता है, आंतों को काट देता है और तीव्र वेदना प्रदान कर व्यक्ति को मार देता है इसी तरह विषय वासनाओं से क्षणिक सुख व आनंद मिलता है किंतु प्रणाम अत्यंत हानिकारक होता है विषय वासनाओं के वशीभूत व्यक्ति धर्म-कर्म, मान आदि होकर निर्लज्ज बन जाता है वह विभिन्न रोगों का शिकार बनता है विषय भोग की अधिकता से निर्बलता, भीरुता, यौन-रोग आदि भयानक रोग घेर लेते हैं | व्यभिचारी की देह अंत में सड़ गल जाती है | दुर्गति में पड़कर अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं |
शास्त्रों में लिखा है कि योनि क्षेत्र में असंख्य सूक्ष्माति सूक्ष्म जीव रहते हैं, मैथुन क्रिया द्वारा वे जीव नष्ट हो जाते हैं और हिंसा का दोष लगता है जो लोग भूख द्वारा इच्छाओं का शमन करना चाहते हैं, वह भूल में पड़े हुए हैं| प्रज्वलित अग्नि को घी अथवा ईंधन डालकर शांत नहीं किया जा सकता है, जिस तरह ईंधन व घी के डालने से अग्नि भड़क उठती है तदैव भोग मैं पढ़ने से लोगों की लालसा और बढ़ती है अग्नि दबाने से ही शांत होती है उसी तरह शुभ विचारों से दबाकर ही हम वासनाओं को शांत कर सकते हैं तनिक विचार कीजिए कि जिस दुराचारिणी नारी ने अपने पति से विश्वासघात कर आप से प्रेम किया है, क्या वह आपकी हो सकेगी ? कदापि नहीं | ऐसी लंपट नारी न जाने कब किसी और को अपने मोह जाल में फांस आपको धोखा दे दे अथवा आपको विपत्ति में पटक कर दूर से ही तमाशा देखने लग जाये | व्यभिचार के अनन्य बुरे परिणाम यथा प्राणों का भय चक्र का विरोध धरना शादी है लंपट वृत्ति हमारी शक्ति सुंदरता और यश को हानि पहुंचाने वाली और आपसी विरोध में मनुष्य को पंप आने वाली है पर स्त्री गमन कारावास आदि अनेक आपत्तियों का कारण रूप है मरणोपरांत व्यभिचारी जीवन नर्क गामी बनता है और अनेकों कष्ट होता है हम अपनी स्त्री कन्या बहन आदि की जिसको से रक्षा करना चाहते हैं किंतु हमारी अपनी दृष्टि बुरी होती है विचार है क्या हमारी बुरी दृष्टिकोण बहू बेटियों के स्वजनों को बुरी नहीं लगेगी हमें बुरी लगने वाले यह बात अवश्य में उन्हें भी बुरी नहीं आता दृष्टि को पवित्र रखना अत्यंत जरूरी है |
बुद्धिमान तथा धर्मात्मा गृहस्थों को यथा सम्भव अपनी स्त्री से सहवास में भी संयम संतोष बरतना चाहिए, ताकि पूर्ण ब्रह्मचर्य की शीघ्र प्राप्ति हो सके | वैश्या व परस्त्रियों का तो स्वप्न में भी ध्यान नही करना चाहिए | कई व्यक्ति सोचते है कि जैसे तालाब के जल का हरेक व्यक्ति उपयोग कर सकता है, उसी तरह नगरवधुओं, वैश्याओं का जन्म भी हरेक व्यक्ति के लिए है | अतः उन से मैथुनाचार में कोई हानि नही है | वे तो दाम देने पर मिलने वाले सुख है अतः इसमे किसी तरह का भय भी नही है | किंतु ऐसा सोचने व आचरण करने वाले व्यक्ति अज्ञानी ही नही किन्तु मूर्ख भी है |