शनिवार, 26 जून 2021

जैन श्रावक के 12 व्रत भाग 2

(2) मृषावाद विरमण अणुव्रत

यह व्रत श्रावक के भाषा प्रयोग से संबंधित है | हर प्राणी से हमे मधुर वचनों द्वारा बातचीत करनी चाहिए | और इस तरह बोलना चाहिए जिससे दूसरों का कल्याण हो | कुपथ्य से जैसे रोग बढ़ते है वैसे ही झूठ बोलने से, शत्रुता, विरोध, अपयश, अविश्वास आदि दोष उत्पन्न होते है | बुरे व कटु शब्द मन को छेदने वाले होते है और प्राणी को जीवन भर सालते रहते है | आग से दग्ध वट वृक्ष वर्षा ऋतु में पुनः हरा भरा हो सकता है किंतु वाग-बाण से विक्षत मनुष्य का घाव कभी भी नही भर पाता है | सच्चे, मधुर और प्रिय लगने वाले शब्दों की संसार मे कमी नही है | मधुर बोलने में अधिक परिश्रम नही करना पड़ता है, उन पर कुछ रुपये व्यय नही करने पड़ते है | मधुर शब्द कही बाहर से भी नही मंगवाने होते है | जब मधुर शब्द इतने सुलभ है तो ह्रदय दाहक, क्रूर व कटु वचन या अपशब्द असमय, अकारण, बोल कर वाक-बाणो से अन्य प्राणियों को घाव लगाना कहां की मनुष्यता है ? बिना शस्त्र की यह जीव हत्या करना एक महान अवगुण है |

 हम चाहे तो इस मानव देह को मुक्ति प्राप्ति का साधन बना सकते है | मनुष्य देह के अतिरिक्त मुक्ति प्राप्ति के लिए कोई और गति नही है | अतः ऐसे अमूल्य मानव भव को पाकर जो पुरुष कर्त्तव्य च्युत हो जाये, सत्य त्याग कर झूठ व कटु बोले तो पता नही वे फिर किस जन्म में अपना आत्मोत्थान करेंगे | कपट भरे, झूठे व अशुभ वचन बोलने वालों से तो गूंगे ही भले है, वे अपनी जिव्हा से अपनी तथा अन्य प्राणियों की हानि तो नही करते है | जिनके मुख से झूठे व कटु शब्दों की दुर्गंध युक्त नाली सदा बहती रहती है उनको दातुन करते, स्नान करते देख ज्ञानी जन हंसा करते है |

 वे लोग धन्य है जिनके निर्मल ह्रदय से निकले अमृत तुल्य वचन दुसरो के चित्त को शांति पहुंचाते है | शुभ्र चांदनी चन्दन, मालती व केवड़े के सुमन भी उतनी शीतलता नही दे पाते है जितनी शीतलता कर्ण-प्रिय मधुर व सत्य वचन हमे प्रदान करते है | सत्यवादी मानव विश्व में चंद्रवत प्रकाश एवं शांति का प्रसार करते है | सत्यवादी का यशोगान स्वर्ग के देव भी करते है | यम, नियम, विद्या, विनय, चरित्र और ज्ञान आदि उत्तम गुणों का आधार यह सत्यव्रत ही है | सत्यव्रती व सत्यनिष्ठ महापुरुषों को भूत, प्रेत, राक्षस, सर्प, सिंह आदि हिंसक जीव भी कोई कष्ट नही पहुंचा सकते है किन्तु वे उनके आगे नतमस्तक हो विनम्र भाव से खड़े हो जाते है | गूँगापन, बधिरत्व, पागलपन, मूढ़ता, जीभ तथा मुख के रोग झूठ बोलने के फल है | अतः झूठे, कटु, अप्रिय एवं दूसरों को हानि पहुंचाने वाले वचनों का सर्वथा त्याग करना चाहिए | यदि किसी कारण वश कोई गृहस्थ नितांत सत्य बोलने में असमर्थ हो तो आगे कहे पांच मोटे असत्यों को त्यागने की प्रतिज्ञा जरूर करनी चाहिये:-1.कन्या व बालक के रिश्ते से संबंधित बातों का 2. पशुओं के क्रय विक्रय में 3.भूमि संबंधी 4. धरोहर 5. झूठी गवाही |

1.कन्या संबंधी असत्य:- प्राय कन्या बालक के वैवाहिक संबंध कराने हेतु असत्य बातों का सहारा लिया जाता है वह उचित नहीं है संबंध कराने की दृष्टि से कन्या या बालक का झूठा गुणगान करना आयु को घटा बढ़ाकर बतलाना आकृति गुण विद्या व स्वरूप आदि के संबंध में झूठ बोलना सर्वथा अनुचित है उसी तरह संबंधों को रोकने के लिए गुणों को छुपाकर अवगुणों को प्रकट करना वह झूठा वर्णन करना भी पाप है वैवाहिक संबंध कोई साधारण बात नहीं है किंतु जीवन भर का सौदा है असत्य व गलत बातों के सहारे जो संबंध करवाए जाते हैं असलियत खुलने पर प्रायः वे वैमनस्य व विरोध के कारण रूप बनते है | और इसके दोष का सर्वप्रथम भागी वह असत्य बातें कहकर संबंध करवाने वाला या अड़चन डालने वाला व्यक्ति ही है शास्त्रकारों ने तो त्यागी पुरुषों को ऐसे सांसारिक संबंध करने करवाने से दूर ही रहने को कहा है उनके व्रत में इस का निषेध किया गया है श्रावक, गृहस्थ को भी यथासंभव इनसे बचना चाहिए गृहस्थ होने के नाते वह पूर्णरूपेण इन नाते-रिश्तो को करवाने से दूर नहीं रह सकता है अतः इन रिश्तो को करवाते समय पूर्ण सत्य का सहारा लेकर बालक कन्या के संबंध में कम ज्यादा बातें नहीं करनी चाहिए सावधानी रख सत्य बातें कहकर संबंध करवाने चाहिए | कई नासमझ माता-पिता तथा बिचौलिए दलाल अपने स्वार्थवश बेमेल विवाह करवा कर कन्या, बालक के जीवन से भयंकर खिलवाड़ करते हैं वह उनका जीवन नष्ट कर देते हैं इससे वंश की अपकीर्ति होती है और इन परिणितों के आह से समाज को हानि पहुंचती है यह झूठ पर आधारित संबंध आर्त-ध्यान, रौद्र-ध्यान अवनति के कारण बनते हैं 

2.पालतू पशुओं संबंधित असत्य:- गाय भैंस आदि पालतू पशुओं क्रय-विक्रय में भी झूठ बोलना उचित नहीं है | उनकी आयु, गुण-दोष, चाल-ढाल, दूध-घी आदि को बढ़ा चढ़ाकर बताना पाप है यह झूठ अनेकों अनर्थों यथा बछड़े का भूखा रहना, पशुओं की मारपीट आदि के कारण रूप बनते हैं | इसी तरह घोड़े बेल आदि के बोझ उठाने व बल के संबंध में लालच में आकर स्वार्थ वश असत्य बातें नहीं करनी चाहिए मुक पालतूपशु इस संबंध में कुछ बोल नही सकते हैं किंतु पुराने मालिक के झूठ के कारण उन्हें अपने नए मालिक के अनेकों अत्याचार व प्रताड़नाएं सहनी पड़ती है | कभी-कभी तो अत्याचार इतनी क्रूरता से किए जाते हैं कि पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है असलियत खुलने पर लेनदेन करने वालों में झगड़ा हो जाता है इससे दोनों पक्षों की हानि व निंदा होती है अतः पालतू पशुओं के क्रय-विक्रय में लिए जाने वाले असत्य वचनों से सर्वथा नितांत दूर रहना चाहिए |

3. भूमि सम्बन्धी असत्य :-अपनी हो या पराई, भूमि की लेनदेन के समय उसके गुण दोषों का, नाम व सीमा का सत्य वर्णन ही करना चाहिए | इस संबंध में झूठ बोलने से शत्रुता और झगड़े उत्पन्न होते हैं और न्यायालयों की शरण लेनी पड़ती है और धन, समय का नुकसान होता है यही नहीं सरकारी अधिकारियों की अनुचित चापलूसी करनी पड़ती है कभी-कभी तो झगड़े करने वाले तो परलोक सिधार जाते हैं और भूमि संबंधी झगड़े चलते रहते हैं भूमि शब्द में जमीन, क्षेत्र, मकान, व्यापार, वाणिज्य, बाग बगीचा आदि समाए हैं | उपरोक्त सब वस्तुओं की लेनदेन में झूठ से हमेशा बचना चाहिए अर्थात कभी झूठ नही बोलना चाहिए |

4. अमानत धरोहर संबंधी असत्य:-कोई भी व्यक्ति हमें धर्मात्मा व भला समझ अपना धन, द्रव्य व अन्य वस्तुओं को धरोहर रूप में बिना लिखा पढ़ी के रख कर जाता है जब जरूरत पड़ने पर वह अपने धन आदि वस्तुएं मांगे और हम लालच से उसे झूठा बतावे और गवाही मांगे तो यह कितना नीच कृत्य है | धरोहर रखने वाले का माल गया और समाज में झूठा साबित हुआ, कितने कष्ट उठाकर उसने धन कमाया था तथा पता नहीं किस कठिन समय के लिए उसने उसे बचा कर हमारे पास रखा था लालच व पराया धन दबाने की हमारी नीति से उसकी आत्मा को कष्ट होता है उसके परिवार जन उसके संबंध में क्या सोचेंगे उस व्यथित आत्मा की आह हमारी जरूर दुरावस्था करेगी | धरोहर दबाना एक महान पाप है, अतः इस कुकर्म से गृहस्थ को सदा बच कर रहना चाहिए महापुरुषों की आज्ञा है कि यदि कोई पुरुष धरोहर रखने के पश्चात मृत्यु को प्राप्त हो जाए तो वह धरोहर उसके उत्तराधिकारियों को बुलाकर सुपुर्द करनी चाहिए, यदि कदाचित ऐसा ना हो सके तो पंच महाजनों को सारी बात बता कर उस धन का सदव्यय किसी धार्मिक अथवा सार्वजनिक कार्य में करना चाहिए धरोहर को कभी भी नहीं दबानी चाहिए |

5. असत्य साक्षी(गवाही) देना:- झूठी साक्षी देना महान अपराध और पाप है, अपने स्वार्थ, लोभ व अभिमान के वशीभूत हो अथवा किसी के कहने पर धन अथवा जीवन की रक्षा के लिए भी न्यायालय या पंचायत के समक्ष झूठ नहीं बोलना चाहिए | हमें अपनी जानकारी के अनुकूल पूछने पर सत्य बातों का ही ब्यौरा देना चाहिए | यदि कारणवश सत्य बोलना उचित ना लगे तो मौन रहना चाहिए | किंतु असत्य भाषण व झूठी गवाही यह एक ऐसा कलंक है जिसे हम कभी भी नहीं हो सकते हैं | 

 इस प्रकार इन पांच महा असत्यों का सर्वथा त्याग करके, अन्य छोटे-मोटे झूठ से भी बचे रहना चाहिए | हंसी मखोल में अपनी झूठी बड़ाई करना किसी की मानहानि व अपयश हेतु उस पर झूठा कलंक लगाना आदि छोटे-मोटे असत्य वचनों से बचे रहना चाहिए | अपनी मानवता, धर्म व कुल की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए हमें कभी भी ऐसे वचन नहीं बोलने चाहिए जो दूसरों के दुख के व अपने कर्म बंधन के कारण रूप बने | सत्यव्रत के पालन से लोगों का विश्वास, मान तथा कार्य में सफलता मिलती है | व्यापार की वृद्धि होती है वह प्रेम भाव बढ़ता है सत्य भाषी के वचन व व्यवहार का सम्मान किया जाता है, सत्य वक्ता के वाणी में ऐसी अलौकिक शक्ति उत्पन्न होती है जिससे उसके मुख से निकले वचन पूर्ण हो जाते हैं | 

  उपरोक्त इहलौकिक लाभों के अलावा सत्य भाषी होने के कारण धर्म की प्राप्ति होती है और हम भवोभव में सुखी होते हैं | सत्यव्रत हमारे पापों का नाश करने वाला एवं कुकर्मो से हमें दूर रखने वाला, अशुभ कर्मों की निर्जरा में सहायक व पुण्य की प्राप्ति में साधन रूप है | सत्यव्रत के पालन से हम जन्म जन्मांतर में सुख भोगते हुए अंत में अजर,अमर, मुक्ति सुख को प्राप्त करते हैं |  श्रावक के मृषावाद विरमण अणुव्रत में अधोलिखित पांच अतिचार लगने की संभावना रहती है :-

1. बिना वजह दोषारोपण:- बिना वजह व बिना कारण किसी पर शंका करना या उन पर षड्यंत्रादि का अभियोग लगाना, उन पर चोरी अथवा अन्य दुष्कृत्य का कलंक लगाना आदि सत्य व्रत के प्रथम अतिचार है | ये भयंकर हानिकर्त्ता है अतः श्रावक को इनसे बचकर रहना चाहिए |

2. गुप्त बात प्रकटीकरण:- किसी की कोई गुप्त बात जो हमें पता हो या बताई गई हो को सर्वसाधारण में प्रकट करना सत्य व्रत का दूसरा अतिचार है | इससे संबंधित व्यक्ति की हानि होती है और हमारी उससे शत्रुता हो सकती है | 

3. स्व-स्त्री मंत्र भेद:- अपनी स्त्री तथा घर की अन्य बातें मित्रों व अन्य लोगों के समक्ष प्रकट करना अतिचार है | ऐसा करने पर स्त्री को तथा घर के सदस्यों को शर्म से झुकना पड़ता है, घर का भेद खुल जाता है | आपसी वैमनस्य बढ़ता है और अन्य लोग गैर लाभ उठाते हैं |

4. झूठी सलाह:- किसी को कष्ट में डालने के लिए जानबूझकर झूठी सलाह देना मोक्ष-मार्ग व आत्म भाव के विरुद्ध उपदेश देकर उसे पाप कर्म में प्रवृत्त करना सत्यव्रत का चतुर्थ अतिचार है |

5. कूट-लेख:- कुबुद्धि के वशीभूत हो झूठे लेख व पत्र बनाना सत्यव्रत का पंचम अतिचार है | कई बार हम ऐसे लेख लिखकर यह सोच लेते हैं कि हमारा तो झूठ बोलने का त्याग है लिखने का नहीं | यदि कोई नासमझ सच्ची बात को नहीं समझ सके तो इसमें हमारा क्या दोष है | लेकिन यह हमारी कुबुद्धि का पापमय प्रयोग है | इससे हमारे सत्यव्रत को हानि ही नहीं पहुंचती, बल्कि व्रत भंग की भी संभावना रहती है |

उपरोक्त पांच अतिचारों से बचने की कोशिश करते हुए गृहस्थ को सत्यव्रत का पालन करना चाहिए |

3. अदत्तादान विरमण अणुव्रत


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